ब्रह्मलीन योगिराज मनोहर हरकरे बीसवीं शताब्दी के महान योगी थे। उन्होंने महाराष्ट्र के पवनी ग्राम में वैनगंगा नदी के तट पर कई वर्षों तक तपस्या करके ज्ञान की प्राप्ति की। प्राप्त ज्ञान को उन्होंने उदारता के साथ समाज को समर्पित किया। इस पुस्तक में उनके साधना-मार्ग, ज्ञान-प्राप्ति की प्रक्रिया, जीवन में घटित घटनाएँ तथा भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी वैदिक ज्ञान के प्रसार का विस्तृत विवरण दिया गया है।
उनके बाल्यकाल से लेकर जीवन के अंतिम क्षण तक की यात्रा को पढ़ते हुए पाठक यह सीख पाता है कि जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए पूर्णता की ओर कैसे बढ़ा जाए। एक योगी का जीवन कितना कठिन होता है, इसका बोध कराते हुए इस पुस्तक में उनके जीवन-प्रवास के आधार पर जीवन में योग-साधना कैसे करनी चाहिए, इसका मार्गदर्शन भी मिलता है। साधक और योगी कैसे बनते हैं, यह इस चित्रात्मक चरित्र से जाना जा सकता है। इसमें योगी के जीवन की वास्तविक झलक प्रस्तुत की गई है।
यह पुस्तक योगीजी के पुत्र डॉ. दत्ता हरकरे द्वारा लिखी गई है और इसे पढ़ते समय पाठक स्वयं को उससे एकाकार अनुभव करता है। इसमें योगी मनोहरजी के जीवन से संबंधित दुर्लभ छायाचित्र भी सम्मिलित हैं। प्रत्येक साधक को यह अत्यंत सुंदर पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। यह पुस्तक मराठी भाषा में उपलब्ध है तथा शीघ्र ही हिंदी और अंग्रेज़ी भाषाओं में भी प्रकाशित होगी।
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