आज समाज अनावश्यक रूप से तथाकथित संस्कृतियों, धर्मों, संप्रदायों आदि में बँटा हुआ है। यह वैज्ञानिक वैदिक संस्कृति के माध्यम से अपनी एकता पुनः प्राप्त कर सकता है। केवल वैदिक परंपरा ही इन्हें एकजुट करने में सक्षम है। सभी को यह जानना चाहिए कि प्राचीन विश्व वास्तव में वैदिक (अर्थात प्रबुद्ध) था। ज्ञान की इस परंपरा को विश्व में पुनः स्थापित किया जा सकता है; और यही 'वैदिक विश्व' का उद्देश्य है। वैदिक संस्कृति उदार है और यह प्रत्येक मनुष्य की अपार क्षमता में विश्वास रखती है तथा अपने सिद्धांतों को दूसरों पर थोपती नहीं है।” – योगिराज मनोहर हरकरे (काकाजी)
वैदिक विश्व का उद्देश्य ज्ञानेश्वर, तुकाराम, एकनाथ, नामदेव, कबीर, मीराबाई और योगेश्वर जैसे महान संतों द्वारा रचित भजनों के बारे में आम लोगों को जागरूक करना है। वैदिक विश्व के प्रचारक इन भजनों का सार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण लोगों को समझाएंगे।
भगवद् गीता के अनुसार, सभी मनुष्य शूद्र (निम्न जाति के) के रूप में जन्म लेते हैं। वे सुसंस्कृत शिक्षा प्राप्त करने के बाद ब्राह्मण बन जाते हैं। ऐसे शुद्ध साधक, जिन्होंने ज्ञान प्राप्त कर लिया है (ब्रह्मम जाति), योग-साधना के माध्यम से ब्राह्मण बन सकते हैं।
इस प्रकार कोई भी ब्राह्मण बन सकता है।
आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धांतों को समाहित करने वाली प्राचीन वैदिक परंपरा का विश्वभर में प्रचार और प्रसार करना।
योगशास्त्र को उसके विभिन्न चरणों-आसन, प्राणायाम, षट्चक्रभेदन तथा योगनिद्रा-के माध्यम से प्रचारित एवं प्रसारित करना। योगशास्त्र मानव के आध्यात्मिक विकास का वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करता है। वैदिक परंपरा की मुख्य विशेषता के रूप में प्रत्येक व्यक्ति को दैनिक साधना करना आवश्यक है।
वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण तथा व्यास द्वारा रचित महाभारत जैसे प्रतीकात्मक महाकाव्यों के वास्तविक (योगिक) अर्थ के बारे में सामान्य जन को शिक्षित करना।
वैदिक विश्व के संदेश का प्रसार करना, संगीत कार्यक्रमों का आयोजन करना तथा लोगों को भागवत ज्ञान और विज्ञान से आलोकित करना।
ज्ञान और विज्ञान का उचित संतुलन स्थापित करने के लिए धर्म, संप्रदाय और पंथों की स्थापना की गई। पुराने और अवैज्ञानिक अंधविश्वासों को समाप्त करने तथा मानव जीवन को वैज्ञानिक और प्रगतिशील बनाने के उद्देश्य से नए धार्मिक पंथों का प्रसार हुआ। समय के साथ ये नए संप्रदाय भी उसी प्रकार समाप्त हो गए। ये संप्रदाय धर्म और उसके सिद्धांतों के विरोधी नहीं थे—प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय का इतिहास इसका साक्ष्य देता है। नई दर्शनशास्त्र या नैतिक नियमों के स्थान पर एक आदर्श, अनुकरणीय और वैज्ञानिक आदर्श-प्रतिमान प्रस्तुत किया गया। वास्तव में, प्रत्येक नए धार्मिक समूह का उद्देश्य मानव जीवन में विज्ञान और मूल्यों के बीच संतुलन स्थापित करना ही था।
प्राचीन काल में सम्पूर्ण विश्व वैदिक दर्शन का अनुसरण करता था और वैदिक जीवन जीता था। वैदिक का अर्थ है—प्रकाश प्रदान करने वाला, चेतना को जाग्रत करने वाला। आज भी सभी विवेकशील और ज्ञानी लोग इस वैदिक जीवन की ओर आकर्षित हो रहे हैं। भौतिक विज्ञान भले ही समृद्ध जीवन प्रदान कर दे, लेकिन यह संपूर्ण विश्व को यह स्वीकार करना होगा कि वह मानसिक संतोष और शांति नहीं दे सकता। इस वैदिक जीवन के मूल में योग है—अर्थात आध्यात्मिक विज्ञान।
भौतिक और वैज्ञानिक विलासिता मानसिक संतुष्टि और शांति देने में असफल रहती है, इसलिए भारत और भारत के बाहर के युवा प्राचीन वैदिक जीवन का अध्ययन करने के लिए भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह वैज्ञानिक और संतुलित जीवन की ओर अग्रसर होने का एक शुभ संकेत है।