ब्रह्मलीन पूज्य विश्वयोगी मनोहर हरकरे उर्फ काकाजी आध्यात्मिक जगत की एक सुप्रसिद्ध विभूति थे। वे अत्यंत शिक्षित थे (बी.ए., बी.एससी., बी.एड., एम.ए. संगीत, बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स, डॉक्टर ऑफ साइंस)। योगिराज श्री ज्ञानेश्वर माऊली की कृपा से योगीश्रेष्ठ को निर्विकल्प समाधि तक के सभी दिव्य एवं आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त हुए। नागपुर के निकट पावनी में लगभग 9 वर्षों तक की गई योग साधना के माध्यम से अर्जित आध्यात्मिक ज्ञान को उन्होंने केवल अपने तक सीमित न रखते हुए “वैदिक विश्व” नामक एक आध्यात्मिक समूह की स्थापना की। इस प्रकार, ज्ञानेश्वर माऊली से प्राप्त निर्देशानुसार उन्होंने जनसामान्य तक आध्यात्मिक ज्ञान पहुँचाने का कार्य आरंभ किया।
परम पूज्य काकाजी ने सम्पूर्ण विश्व की यात्रा कर वैदिक विश्व के कार्य का विस्तार किया। उन्होंने देश-विदेश में भ्रमण कर जनसामान्य तक पहुँच बनाई। अनेक स्थानों पर उन्होंने व्याख्यान और कार्यशालाओं का आयोजन किया। इन कार्यशालाओं में उन्होंने आसन, प्राणायाम, ओंकार षट्चक्र-भेदन तथा योगनिद्रा पर विशेष बल दिया। उन्हें हिंदी, मराठी, अंग्रेज़ी और बंगाली भाषाओं में पूर्ण दक्षता प्राप्त थी। उन्होंने योगशास्त्र और वैदिक साहित्य पर व्यापक लेखन किया। उनकी पुस्तकों और लेखों को बुद्धिजीवियों और अनुभवी विद्वानों द्वारा मान्यता एवं स्वीकार्यता प्राप्त हुई। उन्हें योगशास्त्र पर पूर्ण अधिकार था। वे योगानुभवों का अर्थ आज की वैज्ञानिक भाषा में सरलता से समझाया करते थे। रामायण, महाभारत, पुराण, भागवत आदि महाकाव्य केवल इतिहास नहीं हैं, बल्कि योगमार्ग के अनुभवों और सत्यों को रूपकात्मक काव्य के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। साधना के द्वारा कोई भी इन अनुभवों को प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त कर सकता है और स्वयं राम, कृष्ण बन सकता है।
परम पूज्य काकाजी ने आत्मबोध पर आधारित अनेक अनूठी पुस्तकों की रचना की, जो योग साधना से जुड़ी हैं। उन्होंने दिल्ली में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में “श्रीमद्भगवद्गीता : जीवन जीने की एक पद्धति” विषय पर व्याख्यान देकर विश्व के समक्ष वैदिक संस्कृति का परिचय कराया। इस संदर्भ में उनकी सभी पुस्तकें पठनीय, व्यवहारिक और आदर्श हैं। अमेरिका यात्रा के दौरान उन्होंने “ब्रह्मांड में वैदिकता” विषय पर अनेक व्याख्यान दिए। चर्च में दिए गए उनके व्याख्यानों को अत्यंत सराहना मिली। उन्होंने अमेरिकावासियों को हिंदू धर्म का वास्तविक अर्थ समझाया। वैदिक ज्ञान के प्रसार हेतु उन्हें देश-विदेश से आमंत्रण प्राप्त होते रहे।
वे विश्वभर के साधकों का मार्गदर्शन करते थे, ताकि वे साधना के माध्यम से प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त कर सकें। उनके मार्गदर्शन में अनेक साधकों ने योग में दिव्य अनुभव प्राप्त किए और ऋषियों द्वारा प्रदत्त ज्ञान को आत्मसात किया। उनके पुत्र “ज्ञानयोगी” डॉ. दत्ताजी हरकरे, जो परम पूज्य काकाजी के मार्गदर्शन में साधना द्वारा प्रकाशित हुए, उनके पश्चात इस ज्ञान का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
एक समय सम्पूर्ण विश्व वैदिक परंपरा से जुड़ा हुआ था। यह 90 वर्ष का शाश्वत युवा ज्ञानेश्वर माऊली के उस निर्देश को साकार करने हेतु अथक रूप से कार्यरत रहा, जिसका उद्देश्य इस विस्मृत वैदिक परंपरा को पुनः संपूर्ण विश्व में जाग्रत करना और सम्पूर्ण मानवता को एक सूत्र में बाँधना था। ब्रह्मलीन योगी मनोहर हरकरे उर्फ काकाजी प्रयोपवेशन (अर्थात भोजन और जल का त्याग कर देह त्याग) में विश्वास रखते थे। अनेक महान संतों और योगियों की भाँति, उन्होंने 7 मार्च 2003 को 90 वर्ष की आयु में इसी प्रक्रिया द्वारा अपनी देह त्यागी और सदा के लिए ब्रह्म अवस्था को प्राप्त किया। वे अब ब्रह्मलीन अवस्था (मुक्ति अवस्था) में स्थित हैं। उन्होंने अपना कार्य अपने पुत्र डॉ. दत्ताजी हरकरे एवं अन्य अनुयायियों को सौंप दिया।
उनकी आत्मकथात्मक पुस्तकों का अध्ययन करने से पाठक योगशास्त्र में उनकी प्रामाणिकता और अधिकार को समझ सकते हैं। आज भी अनुयायी विभिन्न स्थानों पर आयोजित योग साधना कार्यशालाओं और योग कक्षाओं के माध्यम से उनके मार्गदर्शन का लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
वर्तमान में यह ज्ञान उनके पुत्र डॉ. दत्ताजी हरकरे और अन्य अनुयायियों द्वारा “योगी मनोहर ज्ञान प्रसार” के माध्यम से प्रसारित किया जा रहा है। इस सतत ज्ञान-यात्रा में हमारे साथ जुड़िए।