शरीर आत्मा के पोषण का माध्यम है, इसलिए उसे शुद्ध और समर्थ बनाए रखने के लिए योगासन करना साधना की पहली सीढ़ी है।
आसनों के बाद प्राणायाम का क्रम आता है। प्राणायाम साधक को मन-नियंत्रण प्राप्त करने में सहायता करता है।
इसके पश्चात ध्यान की अवस्था आती है। ध्यान साधक की कार्यक्षमता बढ़ाता है और उसे आध्यात्मिक प्रगति की ओर ले जाता है।
योगिराज ने स्वयं ओंकार षट्चक्रभेदन और योग-निद्रा का अनुभव किया है। उनका कहना है कि ये सभी क्रियाएँ/योगिक प्रक्रियाएँ किसी भी व्यक्ति के लिए सुलभ हैं। आत्मानुभूति साधक की शारीरिक और आध्यात्मिक क्षमता पर निर्भर करती है। त्राटक साधना आत्मबोध का एक सरल मार्ग है।