योग अभ्यास से भी आगे की सर्वोच्च अवस्था कुंडलिनी जागरण है।
कुंडलिनी जागृति आत्मसाक्षात्कार की उच्चतम अवस्था तक ले जाती है तथा शक्ति और तेज प्रदान करती है।
केवल सिर को स्पर्श करने या शक्तिपात से कुंडलिनी जागृति संभव नहीं है। इसके लिए उचित और मार्गदर्शित प्रयास अर्थात् साधना आवश्यक होती है।
जिस प्रकार लोहे के चुम्बक बन जाने पर उसके सभी अणु पूरी तरह परिवर्तित हो जाते हैं, उसी प्रकार अपने प्रयासों और योग अभ्यास से कुंडलिनी जागरण के समय हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं में ऐसा ही रूपांतरण संभव होता है।
कुंडलिनी क्या है? कुंडलिनी जागृति क्या है?
इस पुस्तक में ऐसे सभी प्रश्नों की वैज्ञानिक व्याख्या पहली बार की गई है।