संत ज्ञानेश्वर महाराज बारहवीं शताब्दी में महाराष्ट्र के ऐसे महान संत थे, जिन्होंने आलंदी ग्राम में संजीवन समाधि ली और साक्षात् ईश्वर स्वरूप बने। उन्होंने ज्ञानेश्वरी, अमृतानुभव, हरिपाठ जैसे ग्रंथों में गीता और साधना के गहन अनुभवों के साथ-साथ यह भी विस्तार से बताया है कि भक्त, साधक और योगी को अपने जीवन में किस प्रकार आचरण करना चाहिए। यह समस्त ज्ञान उनके द्वारा रचित हरिपाठ में समझाया गया है। योगी मनोहरजी ने इसी ज्ञान को सरल शब्दों में इस पुस्तक ‘हरिपाठ–साधना महात्म्य’ में प्रस्तुत किया है।
हरिपाठ का अभ्यास करके प्रत्येक साधक और भक्त सिद्धि प्राप्त कर सकता है। हरिपाठ के ये सभी सुंदर अभंग अभ्यास के साथ मधुर स्वर में गाए भी जाते हैं। यह पुस्तक भक्ति क्षेत्र के लिए एक वरदान है। प्रत्येक साधक को इसका अध्ययन अवश्य करना चाहिए। यह पुस्तक हिंदी और मराठी भाषाओं में उपलब्ध है।
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