महाराष्ट्र के महान संत ज्ञानेश्वर महाराज द्वारा रचित अभंगों के आध्यात्मिक रहस्यों की इसमें व्याख्या की गई है। संत ज्ञानेश्वर महाराज एकमात्र ऐसे संत थे जिन्हें ‘परमेश्वर’ की उपाधि प्राप्त हुई। योगी मनोहरजी बताते हैं कि संत ज्ञानेश्वर महाराज उनके गुरु थे। संत ज्ञानदेव महाराज ने ज्ञानेश्वरी, अमृतानुभव, हरिपाठ तथा अनेक अभंगों की रचना की। इन सभी ग्रंथों और अभंगों में दिव्य, अद्भुत और आध्यात्मिक रहस्यों का वर्णन किया गया है। ईश्वर-दर्शन, कुंडलिनी जागरण जैसे अनेक विलक्षण अनुभवों का उल्लेख इन ग्रंथों और अभंगों में मिलता है। योगी मनोहरजी को संत ज्ञानेश्वर महाराज का दर्शन हुआ और उनकी कृपा से उन्हें इन अभंगों के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान प्राप्त हुआ, जिसे उन्होंने “ज्ञानदेव म्हणे” नामक इस पुस्तक में लिखा है। आध्यात्मिक साधना करने वाले प्रत्येक साधक को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। योगी मनोहरजी ने अपने उत्तरकाल में इन अभंगों के रहस्यों को लिखा और शेष जीवन में संत ज्ञानेश्वर महाराज के ज्ञान का प्रसार किया। इस पुस्तक में योगीजी द्वारा बताए गए अभंगों के दिव्य अर्थ कहीं और उपलब्ध नहीं हैं। यह पुस्तक केवल ज्ञान से परिपूर्ण है, जिसे पढ़कर या सुनकर साधक स्वयं एक दिव्य अवस्था में पहुँच जाता है। यह पुस्तक हिंदी, मराठी और गुजराती भाषाओं में उपलब्ध है।
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